कहा, प्रभु का रिशता पक्की डोर है, जिसके साथ जुडने पर इंसान संसार में रहता हुआ अपना सकता है उस सच्चे रिशते को
होशियारपुर,(राजदार टाइम्स): दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा गौतम नगर में स्थित आश्रम साध्वी वीणा भारती ने प्रवचनों के अमृतरस का रसपान करवाते हुए कहा कि भक्त सदा ही यही प्रार्थना करता है कि, हे प्रभु तुम ही मेरे सच्चे सहाई है। आज यही प्रार्थना उस हर इंसान के अंदर से निकलती है। जो इस संसार की सत्यता को पहचान जाता है। यह रिशते नाते स्वार्थ से भरे पडे है। जिन नातों से ऊपर उठ कर इंसान मर मिटने को तैयार होता है। वही दु:ख के समय उसे छोड जाते है। हमारे धार्मिक ग्रंथ कहते है कि सास टुटते ही रिशते टुट जाएगें, सगे संबंधी तेरे यही छुट जाएगें। स्वार्थ भरी इस दुनीयां में कोई भी सच्चा रक्षक नहीं आज कलिकाल में देखे कितना पापाचार हो रहा है। आज मां बाप को मौत के घाट उतार देने वाले बच्चों के कुकर्म आप को न्युज पेपर के माध्यम से पढऩे को मिल सकते है। कही पर अग्नि को साक्षी मान कर वंधन में वंधने वाले लोग दहेज न देने पर कैसे उसी स्त्री को उसी अग्नि से जलाकर किसी मां बाप से उन्की बेटी, किसी भाई से उसकी बहन को सदा सदा के लिए छीन लेते है।आज हम देखे हमारे रोजमर्रा के कर्म में आने वाली चीजों से कैसे कैसे पाप कर्म करता है। इस लिए यदि संसार में सच्चा रिशता कोई होता तो क्या ये पाप होता? आगे साध्वी ने कहा कि प्रभु का रिशता पक्की डोर है, जिसके साथ जुडने पर इंसान संसार में रहता हुआ उस सच्चे रिशते को अपना सकता है। लेकिन एक प्रशन है कि उस सच्चे रिशते को कैसे जोड़ा जाए? हमारे महापुरूष अपनी बाणी के माध्यम से इंसान के इस प्रशन का उत्तर देते हुए कहते है कि उस ईश्वर से सच्चा संबंध जोडऩे के लिए उसे प्राप्त करना होगा। वो ईश्वर वैसे तो कण-कण में जरें जरे में उसी का स्वरूप व्याप्त है। लेकिन उसे प्राप्त करने के लिए अंतकरण में उतरना होगा, यह तभी संभव हो सकता है। यदि जीवन में अपने भीतर उतरने की युक्त प्रदान करने वाला कोई संत हमारे जीवन में आए क्योंकि संत के बिनां ईश्वर को प्राप्त करना असंभव है। संत कहते है कि जैसे अंधकार में कोई भी व्यक्ति अपनी सुरत को दर्पन में नही देख सकता। ठीक वैसे ही परम प्रकाश का अनुभव किए बिनां आत्म साक्षात्कार नही हो सकता। गुरू ही सच्चे साधक का रक्षक होता है। अंत्रमुखी करके साधक को संसार के इस भव सागर से पार करने में सक्षम होता है। इस लिए जीवन के परम लक्षय को पाने के लिए जरूरत है पुर्ण संत की।