होशियारपुर,(राजदार टाइम्स): दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के गौतम नगर स्थित आश्रम में धार्मिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया।जिसमें संस्थान के संस्थापक एवं संचालक आशुतोष महाराज की शिष्या साध्वी कृष्णा भारती ने इस अवसर पर कहा कि  मानव में क्रांति और विश्व में शांति के लिए सत्य सनातन ब्रह्मज्ञान का पथ दिखा कर समाज को आगे बढ़ने की प्रेरणा दे रहा है।  जब प्रत्येक मानव के अंतःकरण में शांति होगी तभी विश्व सही मायनों में शांत हो पाएगा। साध्वी द्वारा गुरु के जीवन में महत्व के विषय में समझाया गया।जीवन को सुंदर और शांत बनाने वाले ज्ञान और ध्यान की कला केवल पूर्ण गुरु ही प्रदान करते हैं। जो मानव मन के अज्ञान तिमिर को मिटाकर ज्ञान रश्मियों से जीवन का मंगल घट भर दें।उन्होंने कहा कि अध्यात्म आनंद से परिपूर्ण संतुलित जीवन जीने की कला सिखाता है।इसके बिना केवल भौतिक जगत की दौड़ में लगा मानव मन चिंताओं से ग्रस्त रहता है।चिंता से चिंतन की तरफ बढ़ने के लिये ईश्वर दर्शन करवाने वाली एक मात्रा विधि ध्यान ही है। साध्वी ने बताया कि हमारे धार्मिक शास्त्रों में भी ऋषि-मुनियों ने कहा कि संपूर्ण चराचर जगत में ब्रह्म-प्रकाश का अनुभव करना कोई साधारण बात नहीं है।यह केवल गुरु प्रदत्त दिव्य दृष्टि द्वारा ही संभव है। उसी से साधक प्रत्येक कृति में व्याप्त उस एक पारलौकिक सत्ता का दर्शन कर पाता है। श्री कृष्ण जी गीता में उद्घोष करते हैं कि- ‘मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव’ अर्थात् यह सम्पूर्ण जगत सूत्र में मणियों के सदृश मुझमें पिरोया हुआ है। जो भी इस सार्वभौमिक ब्रह्म सूत्र का साक्षात्कार कर लेता है, उसी के लिए यह सम्पूर्ण जगत एक दिव्य माला और प्रत्येक जीव, इस माला में गुँथी एक मणि के समान हो जाता है। इसीलिये स्वामी विवेकानंद जी का भी यही कहना था कि एक दुर्जन के लिए संसार नरक स्वरूप है। इसके विपरीत एक सज्जन के लिए यह स्वर्ग सदृश ही है। और इससे भी विराट दृष्टिकोण ज्ञानी-भक्त का होता है, जिसके लिए यह संसार साक्षात् उस एक ईश्वर का ही प्रतिरूप बन जाता है। नामदेव, चैतन्य महाप्रभु, मीरा, प्रह्लाद जैसे महान भक्तों ने भी हर कण, हर काया में श्री भगवान के दर्शन किए थे। चैतन्य महाप्रभु जब भी काली घटाओं को देखते थे, तो उन्हें उनमें भी अपना श्यामल कृष्ण दिखाई देता l यही समदृष्टि व विस्तारित प्रेम की भावना विश्व में शांति व सद्भावना प्राप्त करने का मुख्य आधार है। इन्हीं के द्वारा भेद-भाव की संकीर्ण दीवारें ध्वस्त हो सकती हैं और ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ का भाव साकार हो सकता है।