विश्व महिला घरेलु हिंसा विरोधी दिवस 25 नवम्बर पर यूथ डेवलपमेंट सेंटर द्वारा जागरूकता कैंप
महिला अधिकारों के हनन और कानून बारे जानकारी आवश्यक
दातारपुर,25 नवंबर(राजदार टाइम्स): सामाजिक तौर पर महिलाओं को त्याग, सहनशीलता व शर्मीलेपन का ताज पहनाया गया है। जिसके भार से दबी महिला कई बार जानकारी होते हुए भी इन कानूनों का उपयोग नहीं कर पातीं तो बहुत केसों में महिलाओं को पता ही नहीं होता कि उनके साथ हो रही घटनाएं हिंसा हैं। आमतौर पर शारीरिक प्रताडऩा यानी मारपीट, जान से मारना आदि को ही हिंसा माना जाता है और इसके लिए रिपोर्ट भी दर्ज कराई जाती है। उपरोक्त विचार भाजपा जिला महासचिव एवं शिक्षाविद सतपाल शास्त्री ने नेहरु युवा केंद्र के निर्देशन में समाज सेवी संगठन यूथ डेवलपमेंट सेंटर द्वारा विश्व महिला घरेलु हिंसा विरोधी दिवस के अबसर पर टटवाली में सुरिन्दर भूषण की अध्यक्षता में आयोजित जागरूकता कैंप में व्यक्त किए गए। इसके लिए भारतीय दंड संहिता की धारा 498 के तहत ससुराल पक्ष के लोगों द्वारा की गई क्रूरता, जिसके अंर्तगत मारपीट से लेकर कैद में रखना, खाना न देना व दहेज के लिए प्रताडि़त करना आदि आता है, के तहत अपराधियों को तीन वर्ष तक की सजा दी जा सकती है, पर शारीरिक प्रताडऩा की तुलना में महिलाओं के साथ मानसिक प्रताडऩा के केस ज्यादा होते हैं। शास्त्री ने कहा कि मनपसंद कपड़े न पहन ने देना, मनपसंद नौकरीया काम न करने देना, अपनी पसंद से खाना न खाने देना, बालिग व्यक्ति को अपनी पसंद से विवाह न करने देना या ताने देना, मनहूस आदि कहना, शक करना, मायके न जाने देना, किसी खास व्यक्ति से मिलने पर रोक लगाना, पढऩे न देना, काम छोडऩे का दबाव डालना, कहीं आने-जाने पर रोक लगाना आदि मानसिक प्रताडऩा है।
शास्त्री ने कहा यहां तक कि घरेलू हिंसा अधिनियम के बारे में भी महिलाएं अनभिज्ञ हैं। घरेलू हिंसा अधिनियम का निर्माण 2005 में किया गया और 26 अक्टूबर, 2006 से इसे लागू किया गया। यह अधिनियम महिला बाल विकास द्वारा ही संचालित किया जाता है। यह क़ानून ऐसी महिलाओं के लिए है, जोकि कुटुंब के भीतर होने वाली किसी किस्म की हिंसा से पी़डित हैं। इसमें अप शब्द कहने, किसी प्रकार की रोक-टोक करने और मार पीट करना आदि शामिल हैं। इस अधिनियम के अंतर्गत महिलाओं के हर रूप मां, भाभी, बहन, पत्नी एवं किशोरियों से संबंधित प्रकरणों कोशामिल किया जाता है। घरेलू हिंसा अधिनियम के अंतर्गत प्रताडित महिला किसी भी व्यस्क पुरुष को अभियोजित कर सकती है अर्थात उसके विरुद्ध प्रकरणदर्ज करा सकती है। भारतीय दंड संहिता की धारा 498 के तहत ससुराल पक्ष के लोगों द्वारा की गई क्रूरता, जिसके अंतर्गत मार पीट से लेकर क़ैद में रखना, खाना न देना एवं दहेज के लिए प्रताडि़त करना आदि आता है। घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत अपराधियों को 3 वर्ष तक की सज़ा दी जा सकती है, पर शारीरिक प्रताडऩा की तुलना में महिलाओं के साथ मानसिक प्रताडऩा के मामले ज़्यादा होते हैं।