कहा, अर्जुन ने यदि प्रभु के विराट स्वरूप का साक्षात्कार किया तो जगद्गुरु भगवान श्री कृष्ण की महती कृपा से
होशियारपुर,(राजदार टाइम्स): श्री राधा गोविंद स्नेह मंदिर की ओर से गोविंद गौधाम में श्री श्रीमद्भागवत कथा में श्री गुरु आशुतोष महाराज की शिष्या साध्वी सुश्री गौरी भारती ने भगवान की अनन्त लीलाओं में छिपे गूढ़ आध्यात्मिक रहस्यों को कथा प्रसंगों के माध्यम से उजागर करते हुए नन्हें भक्त ध्रुव की संकल्प यात्र एवं अजामिल प्रसंगा को बड़े ही मार्मिक ढंग से कह सुनाया। साध्वी ने बताया कि भक्त ध्रुव की संकल्प यात्र प्रतीक है-आत्मा और परमात्मा के मिलन की। यह यात्र तब तक पूर्ण नहीं होती, जब तक मध्य सद्गुरु रूपी सेतु न हो। यही सृष्टि का अटल और शाश्वत नियम है। ध्रुव ने यदि प्रभु की गोद को प्राप्त किया तो देवर्षि नारद जी के द्वारा। अर्जुन ने यदि प्रभु के विराट स्वरूप का साक्षात्कार किया तो जगद्गुरु भगवान श्री कृष्ण की महती कृपा से। राजा जनक जीवन की सत्यता को समझ पाए लेकिन गुरु अष्टावक्र जी के माध्यम से। उस परब्रह्म ज्ञान प्राप्त करने के लिए हाथ में जिज्ञासा रूपी समिधा लेकर वेद को भली-भांति जानने वाले परब्रह्म परमात्मा में स्थित गुरु के पास ही विनयपूर्वक जाएं। आपको ईश्वर के दर्शन अवश्य करवाए जांएगे। संस्थान ने सभी को ईश्वर दर्शन के लिए आमंत्रित किया। उन्होंनेे कहा कि अजामिल ने एक अश्लील दृश्य देखा और वह पतन के गर्त में गिर गया। यदि आज क परिवेश में देखा जाए तो हमारे चहुं ओर अश्लीलता ही अश्लीलता है। अश्लील फिल्मी पोस्टर गलियों में, बाजारों में देखने को मिल जाते हैं, अश्लील गाने सुन को मिल जाते हैं। आज मानव ने वासना व अश्लीलता की हदें ही पार कर दी है। हर वर्ग व आयु आज कामुकत की इस शर्मनाक दौड़ में हांफ रहा हैं। इंटरनेट के सर्च इंजन्स बार बार शीलहीन या अभद्र विषयों और वेबसाइटों की खोज करने में व्यस्त होते हैं। आप विचार करें आज कितनी अश्लील फिल्में, अश्लील गाने, हैं जिनमें रिश्तेनातों की मर्यादा खत्म कर दी जाती है। और जब कोई ऐसी फिल्म देखेगा चाहे वह बच्चा हो या नौजवान उसका मन कितना दूषित हो जाएगा। दूषित वे वासना से पूर्ति मन के कारण बलात्कार जैसी घटनाएं घट रहीं हैं, नारी शोषण हो रहा है। रिश्तों की पवित्र मर्यादा वासना की वेदी पर चढ़ती जा रहीं है। चरित्र दिन प्रति दिन गिरता ही जा रहीं हैं। यदि चरित्र गिर गया तो समझे सब कुछ चला गया। तभी महापुरुषों ने कहा कि चरित्र की रक्षा करना तो प्रत्येक मनुष्य का प्रथम कत्र्तव्य है। चरित्र हमारे जीवन का सबसे अनमोल रत्न है। यही हमें सफलता की ऊंचाइयों या पतन की खाइयों में धकेलता है। शिक्षा के द्वारा चरित्र का निर्माण नहीं हो सकता क्योंकि रावण भी शिक्षित था परंतु उसका आचरण गिरा हुआ हैं, आज शिक्षित कहलवाने वाला वर्ग चरित्रहीन हो रहा है। सद्चरित्रता शिक्षा व बाह्य परिस्थितियों पर निर्भर नहीं करती। शास्त्र कहते हैं-‘पहले जागरण, फिर सदाचरण’ जागरण की नींव पर ही सुंदर आचरण की दीवार का निर्माण संभव है। जागरण का भाव अपने भीतर के तत्त्व रूप का दर्शन करना। यह केवल एक पूर्ण गुरू की कृपा से ही संभव होती है। जागरण के पश्चात् मनुष्य जान लेता है कि उसमें परमात्मा की सत्ता विराजित है। फिर धीरे-धीरे साधना-सुमिरन द्वारा उसके कलुषित विचार, दुर्भावानाएं एवं बुरे संस्कार ज्ञानाग्नि में भस्म हो जाते हैं। उसका चरित्र निखरता जाता है।