आनंद की प्राप्ति बाहर से नहीं बल्कि होती है भीतर से : सुश्री प्रियंका भारती
कहा, सांसरिक उपलधियाँ वास्तविक सुख का मापदंड है ही नहीं
होशियारपुर,(राजदार टाइम्स): दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा आश्रम गौतम नगर में सप्ताहिक सतसंग का आयोजन किया गया। जिसमें संस्थान के संचालक गुरू आशुतोष महाराज की शिष्या साध्वी सुश्री प्रियंका भारती ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि मेरा परिवार सुखी एवं समृद्ध है। व्यवसाय भी खूब बढिया चल रहा है। इसलिए मैं पूरी तरह संतुष्ट हूँ। फिर मुझे अध्यात्म की ओर कदम बढाने की कया आवश्यकता है? सबसे पहली बात तो यह है कि आप संतुष्ट हो ही नहीं सकते, क्योंकि ये सांसरिक उपलधियाँ वास्तविक सुख का मापदंड है ही नहीं। फिर भी यदि कोई व्यकित अपने आपको समृद्ध घर संसार व्यवसाय के आधार पर सुखी समझता है, तो उसकी दशा नशे में चूर एक नशाखोर के समान ही है। नशे की हालत में उसे अपने दु:खों की सुध ही नहीे रहती। परन्तु इसका अर्थ यह बिलकुल नहीं है कि उसके दु:खों का अंत हो गया। क्योंकि दु:ख भूलना एक बात है और सुख को प्राप्त करना कुछ और बात है। विचार कीजिए एक बहुत गरीब व्यकित है। जिसे दो समय की रोटी भी नसीब नही होती। उसके पास सिर ढकने के लिए छत का आसरा तक नहीं है। यदि यह निर्धनता में स्वयं को धनवान के रूप में देखे, अपने इर्द-गिर्द सेवा में खडें दास दासियाँ देखे तो अवश्य ही अपनीे वास्तविक दरिद्रता को ही भूल बैठेगा। स्वप्न जगत की चकाचौंध में खुद को अमीर मानने लगेगा। परन्तु कितनी देर के लिए तब तक जब तक उसका य़ह स्वप्र नहीे टूटता। स्वप्न के टूटते ही, उसे फिर से अपनी गरीबी का एहसास होगा। ठीक इसी प्रकार आज हम जिसे समृध्दि समझ रहे है, वह वास्तव में एक स्वप्न हीे है। धन वैभव की चकाचौध एक नशे के समान है।इस स्वप्न व नशे में अपनी सुध बुध खोकर हम भूलवश स्वयं को सुखी समझ रहे है। परन्तु जैसे ही किसी दुर्घटनावश हमारे व्वसाय में घाटा हो जाता है या परिवार में मन मुटाव पैदा हो जाता है, तब हमारा स्वप्न टूटता है, नशा उतरता है। तभी हम समझ पाते है कि जिसे हम अब तक सुख समझते आए थे वह तो सुख का भ्रम मात्र है। केवल दु:ख को भूलना था। वास्तविक सुख अर्थात आनंद की तो हम आज तक परिभाषा तक भी नहीं जान पाए है। इसलिए अब निरण्य हमेें ही करना है कि हम नशे या स्वप्न की अवस्था में सुख का केवल क्षणिक आभास करना चाहते हैं या पूरी तरह जागकर सदा रहने वाला आनंद प्राप्त करना चाहते है। आनंद की प्राप्ति बाहर से नहीं बल्कि भीतर से होती है, अपने आप को भीतर से भाव आत्म तत्व से जानकर ही हम स्वप्न की अवस्था से निकलकर अपने वास्तविक अवस्था को प्राप्त करते हैं, परन्तु अध्यात्म की प्राप्ति केवल पुर्ण गुरू की शरण में जा के ही हो सकती है। पूर्ण सतगुरू ही इंसान को अध्यात्म ज्ञान प्रदान करके परमात्मा का प्रतक्ष अनुभव करवाने की सामर्थ रखते है। इसलिए हम भी जीवन मे किसी ऐसे महापुरूष की खोज करें जो हमे आत्म ज्ञान देकर स्वप्न की अवस्था से बाहर निकाल आनंद की अनुभूति कराएं।