लॉकडाउन को धीरे-धीरे खत्म करने की प्रक्रिया में देश अनलॉक-2 में पहुंच चुका है। केंद्रीय गृह मंत्रलय द्वारा जारी अनलॉक-2 के दिशानिर्देश एक जुलाई से लागू हो चुके हैं, जिसके तहत स्कूल-कॉलेज व मेट्रो ट्रेन के अलावा तमाम अन्य गतिविधियों को शुरू किया जा रहा है। अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए यह करना आवश्यक भी था, खासकर इसलिए कि आय के स्नोत बंद होने से जनता को बहुत परेशानी हो रही थी। लेकिन सरकार के इस प्रयास से इस मुगालते में मत आइए कि महामारी की समस्या खत्म हो गई है।

वास्तविकता यह है कि कोरोना वायरस संकट बद से बदतर होता जा रहा है। स्वास्थ्य मंत्रलय के डाटा की समीक्षा करने से मालूम होता है कि अकेले जून माह में संक्रमण के 3,94,958 केस सामने आए हैं। विशेषज्ञों का अनुमान है कि इस समय जो संक्रमण दर है अगर उसमें वृद्धि नहीं भी होती है, तो भी जुलाई के अंत तक संक्रमित मामले बढ़कर दस लाख से कहीं अधिक हो जाएंगे। इस तेज रफ्तार को रोकने के उद्देश्य से ही महाराष्ट्र, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, मणिपुर और नगालैंड उन राज्यों में हैं जिन्होंने अपने यहां लॉकडाउन को बढ़ा दिया है। गौरतलब है कि एक जून को ऐसा प्रतीत हुआ था कि बड़े राज्य कोरोना वायरस फैलने की गति को धीमा करने में सफल हो गए हैं, क्योंकि मई के अंतिम सप्ताह में इन बड़े राज्यों को छोड़कर देश के अन्य क्षेत्रों में संक्रमण तेज हो गया था। लेकिन जून में तस्वीर फिर पलट गई और तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश व तेलंगाना में संक्रमण ने गति पकड़ ली।

एक जून को 20 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों में संक्रमण राष्ट्रीय औसत से अधिक तेजी से बढ़ रहा था और 30 जून को दस बड़े राज्यों में गति राष्ट्रीय औसत से अधिक थी। इस समय भारत में संक्रमण दर विश्व में सिर्फ ब्राजील से ही कम है। कोविड-19 महामारी ने भारत के ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व के हेल्थकेयर सिस्टम की परीक्षा ले ली है। इसकी बहुत सी कमजोरियां व खामियां प्रकट हो गई हैं और हर जगह एक ही सवाल पूछा जा रहा है कि नए कोरोना वायरस को नियंत्रित करके इस महामारी पर विराम कैसे लगाया जाए और ठोस हेल्थकेयर सिस्टम विकसित करने का मार्ग क्या होगा?

फिलहाल इस प्रश्न का उत्तर किसी के पास नहीं है। वैक्सीन बनने की प्रक्रिया विभिन्न चरणों में अवश्य है। वैसे वर्ष 2021 के शुरू में वैक्सीन के आने की उम्मीद है, लेकिन यह कितनी कारगर होगी, किसी को मालूम नहीं है। शायद यही वजह है कि अब सरकारें वायरस से योजनाबद्ध तरीके से मजबूती के साथ लड़ने के बजाय जो होगा देखा जाएगा, की नीति अपना रही हैं या दवा से अधिक दुआ पर आश्रित हो गई हैं। मसलन उत्तराखंड की सरकार को लगता है कि आध्यात्मिक पर्यटन से कोविड-19 महामारी पर विजय पाई जा सकती है। उसने चार धाम यात्र के लिए रजिस्ट्रेशन की शुरुआत कर दी है।

हालांकि महाराष्ट्र में प्रसिद्ध गणोशोत्सव (22 अगस्त से) आयोजित नहीं करने का फिलहाल निर्णय लिया गया है। लेकिन राज्य के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने अपनी पत्नी और बेटे के साथ आषाढ़ एकादशी के दिन पंढरपुर के भगवान विट्ठल मंदिर में पूजा की और कामना की है कि भगवान कोई चमत्कार दिखाएं। यह कोई अंधविश्वास नहीं है, लेकिन हताशा में आत्मविश्वास तलाशने का एक सूत्र है। यह सही है कि संकट से निकलने का जब कोई रास्ता दिखाई नहीं देता है तो अताíकक चीजों का सहारा लेने की भी मजबूरी हो जाती है। लेकिन ध्यान रहे इस स्थिति का कुछ लोग फायदा भी उठाने का प्रयास करते हैं। कुछ देशों में एयर डॉक्टर, वायरस शट आउट, क्लोरीन कार्ड आदि नामों से कोविड-19 से सुरक्षित रहने के कार्ड बेचे जा रहे हैं।

दावा यह किया जा रहा है कि कार्ड में संक्रमण दूर करने के रसायन हैं, और जो इसे पहनेगा वह कोरोना वायरस से सुरक्षित रहेगा। यह कार्ड फायदा तो बहुत दूर की बात है, आपके रेस्पिरेटरी सिस्टम और त्वचा को भारी नुकसान पहुंचा देगा। यही हाल उस स्मार्ट रिंग का है जो कनाडा में 300 डॉलर में यह कहकर बेची जा रही है कि संक्रमण के लक्षण उभरने से तीन दिन पहले ही यह अंगूठी बता देती है कि कोविड-19 होने जा रहा है। ऐसे झांसे में न आएं और अपनी मेहनत की कमाई बचाएं। समय के साथ यह वायरस अधिक जटिल होता जा रहा है। अब इसके लक्षणों में शरीर, कमर दर्द, पेट दर्द, रेशेज और पिंडलियों में दर्द भी शामिल हो गए हैं। प्लाज्मा थैरेपी से उपचार की कुछ उम्मीद अवश्य बंधी है, लेकिन इस थैरेपी को हासिल करने के लिए आपकी किस्मत धनाढ्य होनी चाहिए, क्योंकि प्लाज्मा बैंकों की कमी है।