सामान्य नौकरियों की परीक्षाएं, बल्कि मेडिकल और इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षाओं में भी भारतीय भाषाएं बढ़ रही हैं लगातार आगे
दातारपुर,(एसपी शर्मा):
भारतीय भाषाओं में पढऩे-लिखने वालों के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने एक अच्छी शुरुआत की है। उसने सभी विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षण संस्थानों से स्थानीय भाषाओं में शिक्षा उपलब्ध कराने को कहा है। नई शिक्षा नीति के विषय में विचार व्यक्त करते हुए विद्या भारती के उत्तर क्षेत्र के महामंत्री प्रिंसिपल देस राज शर्मा ने बताया कि विद्यार्थियों को यह सहूलियत भी दी गई है कि भले ही वे अंग्रेजी माध्यम में पढ़ते रहे हों, लेकिन चाहें तो परीक्षा अपनी मातृभाषा में दे सकते हैं। उन्होंने कहा इससे विद्यार्थियों को विषय को समझने में आसानी होगी। उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी ने भी अपनी भाषाओं में पढ़ाने पर जोर दिया था। अंग्रेजी ही भ्रष्टाचार की जननी है, क्योंकि जब जनता की समझ में ही नहीं आता कि क्या लिखा गया है, कोर्ट-कचहरी में क्या बहस हो रही है तो उसे गुमराह करना आसान हो जाता है। देस राज शर्मा ने कहा कि शिक्षाविद् दौलत सिंह कोठारी ने 1966 में शिक्षा आयोग के चेयरमैन के रूप में सिफारिश की थी कि न केवल स्कूली शिक्षा, बल्कि उच्च शिक्षा भी अपनी भाषाओं में दी जाए और सभी के लिए समान शिक्षा हो, लेकिन इस बीच यह सपना इतना कमजोर होता गया कि कई निजी स्कूलों में हिंदी बोलना भी अपराध घोषित कर दिया गया। अफसोस की बात तो यह है कि स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की आजादी की दुहाई देने वाले बुद्धिजीवी सिर्फ देखते रहे। पिछले कुछ वर्षों में ऐसे अनेक कदम उठाए गए हैं, जिनसे गांव के गरीब घरों के छात्र भी अपनी भाषा के बूते आगे बढ़ सकते हैं। टेलैंट सिर्फ अंग्रेजी वालों में ही नहीं होती। कोठारी आयोग ने 1979 में इसी स्थापना से सिविल सेवा परीक्षाओं में भारतीय भाषाओं की शुरुआत कराई। हालांकि इस दिशा में जितनी उम्मीद थी, उतनी प्रगति तो नहीं हुई, लेकिन प्रयास जारी हैं। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने कर्मचारी चयन आयोग से 13 भारतीय भाषाओं में भर्ती परीक्षा कराने को कहा है। कर्मचारी चयन आयोग द्वारा बैंकिंग और रेलवे में अंग्रेजी के साथ-साथ हिंदी और दूसरी भाषाओं में भर्ती परीक्षा कराने की शुरुआत कई वर्ष पहले हो चुकी है। न केवल सामान्य नौकरियों की परीक्षाएं, बल्कि मेडिकल और इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षाओं में भी भारतीय भाषाएं लगातार आगे बढ़ रही हैं। मेडिकल की नीट परीक्षा छह भाषाओं से शुरू होकर अब 13 भाषाओं में हो रही है। कोर्ट-कचहरी में भी भारतीय भाषाओं के कुछ कदम पड़े हैं। दो महीने पहले मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ द्वारा सुप्रीम कोर्ट के महत्वपूर्ण निर्णयों को भारतीय भाषाओं में उपलब्ध कराने का फैसला इसका प्रमाण है। इससे उच्च न्यायालय भी अपने-अपने राज्यों की भाषाओं में निर्णय देने के लिए प्रोत्साहित हुए हैं। हाल में केरल हाई कोर्ट ने पहली बार अपना निर्णय मलयालम भाषा में लिखा। उन्होंने कहा ये सभी संकेत स्थानीय भाषाओं के उत्थान की ओर इशारा करते हैं जो शुभ संकेत है।