अखिल भारतीय गुर्जर महासंघ ने अर्पित की श्रदांजलि : रवि शंकर धाभाई
जयपुर,(राजदार टाइम्स):
अखिल भारतीय गुर्जर महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष व वरिष्ठ समाज सेवी रवि शंकर धाभाई ने बताया कि उनके संगठन के पूरे देश भर के गुर्जर समाज के सदस्यों ने अलग-अलग राज्यों एवमं जिलों में 1857 की क्रांति के जनक धनसिंह कोतवाल के फोटो पर फूल अर्पित श्रद्धांजलि अर्पित की। महामारी के चलते को अपने आवास पर ही धन सिंह कोतवाल गुर्जर को याद किया। राष्ट्रीय महासचिव योगेंद्र सिंह गुर्जर ने कहा कि स्वतंत्रता आंदोलन की चिंगारी मेरठ की धरती से शुरू हुई और इसके जनक धन सिंह कोतवाल थे। उस समय वह मेरठ कोतवाली में कोतवाल थे, उन्हीं के नेतृत्व में इस लड़ाई की शुरुआत हुई। कोतवाल धन सिंह ने इन आजादी के दीवानों की सेना का रामराम करके स्वागत किया और उनसे पूछा कि क्या चाहते हो? लोगों से कहा कि-‘मारो फिरंगी को और देश को आजाद कराओ। इन देशभक्तों की सेना कोतवाल धनसिंह के घोड़े के पीछे-2 चल दी, इन्होंने पहला धावा मेरठ की जेल पर बोल दिया। इन्होंने जेल से 836 कैदियों को मुक्त कराया और वे भी मुक्त होकर स्वतंत्रता सेनानियों के इस दल के साथ मिल गए और अंग्रेजों की मेरठ जेल तोड़ दी। रवि शंकर धाभाई ने आगे बताया कि 10 मई 1857 को क्रांतिधरा मेरठ से प्रथम स्वाधीनता संग्राम को आरंभ करने का श्रेय अमर शहीद महान क्रांतिकारी कोतवाल धन सिंह गुर्जर को जाता है। मेरठ के गांव पांचली खुर्द निवासी कोतवाल धन सिंह गुर्जर ने इस जनक्रांति में अहम भूमिका निभाई। जंग-ए-आजादी की पहली लड़ाई में अंग्रेजों से लोहा लेने और मेरठ की धरती पर क्रांति का बिगुल फूंकने वाले शहीद धन सिंह कोतवाल का संदेश मिलते ही हजारों की संख्या में क्रांतिकारी रात में मेरठ पहुंच गए और स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। बाद में ब्रिटिश सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर मेरठ के एक चौराहे पर फांसी दे दी। 4 जुलाई 1857 को बदला लेने के लिए अंग्रेजी हुकूमत ने उनके गांव पर तोपों से हमला बोल दिया। उनके गांव पांचली को तोपों से उड़ा दिया गया। इसमें लगभग 4 सौ लोग मारे गए और बच गए उन्हें फांसी पर लटका दिया गया। ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ जंग छेडऩे वाले जांबाज अमर शहीद धन सिंह कोतवाल का नाम इतिहास के पन्नों में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है। इस क्रांति के बाद ब्रिटिश हुकूमत घुटनों के बल आ गई। अंग्रेजी हुकूमत की नींव हिल गई। मेरठ के एक और गांव गगोल का नाम भी इतिहास में दर्ज है। यहां के नौ लोगों को अंग्रेजी हुकूमत ने दशहरे के दिन फांसी दी। आज भी इस गांव में दशहरा नहीं मनाया जाता है।

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