श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने ऑपरेशन ब्ल्यूस्टार की 36वीं बरसी पर कौम के नाम जारी संदेश के बाद पत्रकारों से बातचीत के दौरान खालिस्तान की मांग को जायज करार दिया और कहा कि अगर केंद्र सरकार सिखों को खालिस्तान देती है तो सिख इन्कार नहीं करेंगे। इस अवसर पर गर्मख्याली सिख संगठनों के कार्यकर्ताओं ने ‘खालिस्तान जिंदाबाद’ के नारे लगाए और उनकी पुलिस से हाथापाई भी हुई। श्री अकाल तख्त के जत्थेदार ने ऑपरेशन ब्ल्यूस्टार में मारे गए लोगों के परिवार के सदस्यों को सम्मानित किया। इस अवसर पर एसजीपीसी के अध्यक्ष गोबिंद सिंह लोंगोवाल ने कहा कि सिख आज भी देश में बेगानगी का एहसास कर रहे हैं। सिखों का भारत के प्रति भरोसा प्रभावित हुआ है। पूछने पर उन्होंने कहा कि एसजीपीसी द्वारा इस हमले में हुई हानि को लेकर दायर मुआवजे के केस पर कानूनी विशेषज्ञों की राय लेकर ही केंद्र सरकार से बातचीत हो सकती है। इसी दौरान श्री हरिमंदिर साहिब के मुख्य ग्रंथी ज्ञानी जगतार सिंह ने हुक्मनामा लेने के बाद कहा कि इस काले दिन को सिख हमेशा याद रखेंगे और अपने भविष्य की रणनीति तय करते रहेंगे। जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह और गोबिंद सिंह लोंगोवाल ने जो बयान दिये हैं वह दुर्भाग्यपूर्ण और भ्रमपूर्ण भी हैं। दोनों व्यक्ति उन पदों पर बैठे हैं जिन्हें सिख समाज हमेशा आशाभरी निगाहों से देखता है लेकिन दोनों ने जिस तरह का बयान देकर सिख समाज में भ्रम फैलाने व राष्ट्रभक्त देशवासियों की भावनाओं को ठेस पहुंचाया वह अति दुर्भाग्यपूर्ण है। जिस प्रकार के भाव ज्ञानी हरप्रीत सिंह व स. गोबिन्द सिंह ने प्रकट किए हैं इस तरह के बयान ही ऑपरेशन ब्ल्यूस्टार से करीब एक दशक पहले शुरू हो गए थे। राजनीतिक स्वार्थ के लिए देश की अखण्डता को चुनौती देना और देश की जनता की भावनाओं से खिलवाड़ करने का सलसिला तो पुराना है लेकिन 1978 में निरंकारियों और जरनैल सिंह भिंडरावाले के शिष्यों के कदम ने पंजाब की राजनीति की जो करवट बदली उसका परिणाम ऑपरेशन ब्ल्यूस्टार के रूप में सामने आया। ऑपरेशन ब्ल्यूस्टार क्रिया की प्रतिक्रिया मात्र ही थी। 1978 से लेकर 1984 और फिर 84 के बाद ऑपरेशन ब्लैक थण्डर से लेकर तत्कालीन मुख्यमंत्री स. बेअंत सिंह के कत्ल तक पंजाब में आतंकवाद व अलगाववाद के कारण राज्य का घर-आंगन व खेत खलियान अगर खून से लाल हो गये तो इसका मुख्य कारण ज्ञानी हरप्रीत हरप्रीत सिंह और गोबिंद सिंह की तरह महत्वपूर्ण पदों पर बैठे जिम्मेवार लोगों के गैर जिम्मेदराना ब्यान ही थे। तत्कालीन जिम्मेवार व्यक्तियों ने अगर जिम्मेवारी से अपनी भूमिका निभाई होती तो शायद ऑपरेशन ब्ल्यूस्टार होता ही नहीं। आज श्री अकाल तख्त के जत्थेदार और शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष जो कह रहे हैं उससे सिख समाज भ्रमित होगा। भ्रमवश अगर कुछ सिख नौजवान फिर मार्ग भटकते हैं तो इसके लिए कौन जिम्मेवार होगा? यूं तो खालिस्तान मिलने वाला नहीं यह बात तो ज्ञानी हरप्रीत सिंह भलीभांति जानते ही हैं। फिर भ्रम फैला सिख नौजवानों को भटकाने की कोशिश क्यों की जा रही है? पंजाब प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अश्वनी शर्मा ने जत्थेदार हरप्रीत सिंह के खालिस्तान के सन्दर्भ में दिए गए बयान को दुर्भाग्यपूर्ण बताया है। शर्मा ने कहा कि ऐसे महान तख्त के जत्थेदार होने के नाते उन्हें ऐसा बयान नहीं देना चाहिए जो देश की एकता, अखंडता और पंजाब के सामाजिक सदभाव को चोट पहुंचाने वाला हो। पंजाबी ही नहीं बल्कि करोड़ों भारतीयों की आस्था श्री अकाल तख्त साहिब में है और इस बयान से करोड़ों लोगों की भावनाएं आहत हुई हैं। पंजाब ने पहले ही बहुत संताप झेला है, हजारों निर्दोष पंजाबियों को अपनी जान गंवानी पड़ी। पंजाबियों ने खालिस्तान के विचा र को हमेशा नकारा है और अनगिनत बलिदान देकर शांति व भाईचारा स्थापित किया है। सामाजिक सद्भाव बना रहे, इसके लिए भाजपा हमेशा प्रतिबद्ध रही है और रहेगी। इसी तरह पंजाब के पूर्व कैबिनेट मंत्री मनोरंजन कालिया ने कहा है कि श्री अकाल तख्त के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने खालिस्तान की मांग को जायज ठहरा कर पंजाबियों की भावनाओं को ठेस पहुंचाई है, जिसकी अपेक्षा उनसे नहीं की जा सकती। श्री कालिया ने कहा कि श्री हरिमंदिर साहिब सभी का सांझा धर्मस्थल है। यहां सिख व हिन्दू श्रद्धा के साथ सिर नवाते और मन्नते मांगते हैं। यह परम्परा सदियों से चली आ रही है। कई हिन्दू घरों में आज भी बड़े-बेटे को सिख सजाने की परम्परा कायम है। यही कारण है कि 10 साल तक आतंकवाद पंजाबियों ने इकट्ठे होकर झेला और कुर्बानियां दी, परन्तु हिन्दू सिख भाईचारे पर आंच नहीं आने दी। खालिस्तान की मांग को पंजाबियों ने सिरे से नकार दिया था। उन्होंने कहा कि पंजाबियों के भाईचारे के सामने आतंकवाद हारा और हिन्दू-सिख भाईचारा जीता है। इस बात का इतिहास साक्षी है। पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री स. बेअंत सिंह के पोते व कांग्रेस के सांसद रवनीत बिट्टू ने कहा कि खालिस्तान के नाम पर पंजाब का माहौल खराब करने की कोशिश होने बारे जो आशंका उन्होंने जाहिर की थी, वह अकाली दल के प्रमुख बादल की जेब से निकले अकाल तख्त के जत्थेदार व एस.जी.पी.सी. के प्रधान लौंगोवाल के बयान से साफ हो गई है। इन दोनों ने देश में सिखों के साथ धक्केशाही होने की जो बात कही है, उसे लेकर केंद्र के अलावा ज्यादातर राज्यों की सत्ता पर काबिज भाजपा को जवाब देना चाहिए। यही जिम्मेदारी भाजपा के सहयोगी अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर बादल व केंद्रीय मंत्री हरसिमरत बादल की बनती है। इसी तरह उक्त दोनों पार्टियों के नेताओं को अकाल तख्त के जत्थेदार व एस.जी.पी.सी. के प्रधान द्वारा दी गई खालिस्तान की मांग को लेकर अपना रुख साफ करना चाहिए और अगर अकाली दल इससे सहमत है तो सबसे पहले केंद्र सरकार से नाता तोडक़र बाहर आए। बिट्टू ने अकाल तख्त के जत्थेदार व एस.जी.पी.सी. प्रधान के इस दावे को खारिज कर दिया है कि सभी सिख व पंजाबी इसके समर्थन में हैं। इन दोनों प्रतिनिधियों को धार्मिक संस्थानों की मर्यादा को ध्यान में रखते हुए अपने आकाओं के सियासी हितों के लिए लोकतांत्रिक व्यवस्था को चुनौती देने से परहेज करना चाहिए जिससे पंजाब का माहौल खराब होने का खतरा है। 

हम सभी को यह समझना होगा कि 1984 में ब्ल्यूस्टार होता ही नहीं अगर धार्मिक व राजनीतिक पदों पर बैठे जिम्मेवार व्यक्ति जिम्मेवारी से कार्य करते। पंजाब में 1980-90 के दशक में जितना खून बहा है उसे कोई नहीं भूला सकता, लेकिन हमें यह बात भी नहीं भूलनी चाहिए कि देश की एकता व अखण्डता को चुनौती देने वाला चाहे किसी समाज, समुदाय या धर्म का कोई व्यक्ति हो या संगठन उस को देश हल्के में नहीं ले सकता। देश की आन, शान और मान से कोई बड़ा नहीं है। तिरंगे की शान के लिए जान दी भी जा सकती है और ली भी जा सकती है।