प्रस्तुति : कुलवीर सिंह
महासचिव हिमलाय परिवार, पंजाब प्रदेश

भारतीय संस्कृति से तात्पर्य है वह संस्कृति जिसका जन्म भारत में हुआ। हालांकि संस्कृति शब्द स्वयं ही भारतीय है।
अर्थ: ‘सम्’ उपसर्गपूर्वक ‘कृ’ धातु से भूषण अर्थ में सूट् का आगमन होने पर ‘क्तिन’ प्रत्यय के समन्वय से ‘‘संस्कृति’’ शब्द बनता है जिसका अभिप्राय है- ‘भूषण भूत सम्यक कृति’। जिन प्रयत्नों द्वारा मनुष्य के जीवन में वेदोक्त विधियों से उत्थान हो, ऐसे प्रयत्न ‘भूषण भूत सम्यक कृति’ कहे जाते हैं। 8 सौ वर्ष की गुलामी से पूर्व भारत में न कोई मुस्लिम था और न इसाई, फिर यह कहाँ से भारतीय संस्कृति का हिस्सा हुए? अब आज हम अपने पूर्वजों के ऊपर हुए अत्याचारों को भले भूल जाएं और जिसे संविधान में भी ‘पंथनिरपेक्ष’ कहा गया उसे छोड़ खुद को ‘धर्मनिरपेक्ष’ मान लें, तो क्या कहा जा सकता है? लेकिन विचार करिये कि जिस बात के लिए आपके पूर्वजों ने मरना-कटना स्वीकार किया लेकिन झुकना नहीं, अपनी संस्कृति को त्यागना नहीं, उसके लिए तो सब कुछ प्राप्त कर आपने घुटने टेक दिए, क्या यह अपने पूर्वजों के प्रति कृतध्नता नहीं है? तब वह भी आताताइयों की बात मान लेते उनकी अधीनता स्वीकार कर लेते तो क्या दिक्कत थी? लेकिन उन्होंने अपने धर्म और संस्कृति से कोई समझौता नहीं किया, उन्हें इस बात की भी अच्छी तरह से जानकारी थी कि मनु के वंशज मनुष्यों के भविष्य के लिए, उनके अस्तित्व के लिए एक मात्र सनातन धर्म ही उपयुक्त है। आप कहेंगे कि जब उन्होंने (आताताइयों ने) स्वयं को भारतीय मान लिया और हमारे जीवन शैली को अपना लिया फिर क्या समस्या है? साहब! यह तो वही बात हुई कि कोई आपके घर पर कब्जा कर ले, आपके स्वजनों को प्रताडि़त करे, मारे-काटे, महिलाओं की अस्मत से खेले और बाद में आपके तौर-तरीके अपना कर स्वयं को आपके परिवार का हिस्सा बताए। क्या इसे आप स्वीकार कर लेंगे? क्या इसे भी प्रताडऩा की श्रेणी में नहीं रखेंगे? आज बहुत सारे लोग स्वयं को धर्मनिरपेक्ष मान क्रिसमस मना रहे हैं। उन्हें इससे कोई मतलब नहीं है कि आपके स्वजन गुरु गोविंद सिंह जी को जिन्होंने आपके अस्तित्व के लिए झुकना स्वीकार नहीं किया और जिन्हें परिवार सहित मार दिया गया, दो बच्चों को जीवित दीवार में चुनवा दिया गया, आप उन्हें कैसे भूल गए? और आज हत्यारे औरंगजेब के नाम पर सडक़ और स्मारकों के नाम रखते हैं?

आप प्रश्न करेंगे कि अब हम क्या करें? क्या पुन: युद्ध लड़े? उत्तर है, बिल्कुल नहीं!
आप जैसे रहते आये हैं वैसे ही रहें, लेकिन आपको अपने इतिहास का भान रहे। आपको यह समझना होगा कि आज भारत में जो मुस्लिम या इसाई हैं वह भी आपके परिवार का ही हिस्सा हैं जिनका बल पूर्वक धर्मांतरण किया गया और आपको ही आपसे लडऩे के लिए वैचारिक रूप से खड़ा कर दिया गया है। इसलिए आपको किसी से युद्ध नहीं लडऩा बल्कि स्वयं के साथ-साथ अपने धर्म और संस्कृति का उत्थान करना होगा। यह युद्ध वैचारिक और मानव मात्र के कल्याण के लिए है।

इससे क्या होगा?

याद रखिये-‘‘किसी रेखा को छोटी करने के लिए यह आवश्यक नहीं है कि उसे तोड़ा मोड़ा या मिटाया जाए, आप उसके बगल में लंबी रेखा खींच उसे छोटा कर सकते हैं, अस्तित्वहीन भी कर सकते हैं।’’ आपको किसी से युद्ध नहीं लडऩा, न ही किसी में कोई दोष निकलना है। आपको किसी को भी बुरा-भला नहीं कहना बल्कि आपको केवल और केवल स्वयं का उत्थान करना है। अपने धर्म-राष्ट्र और संस्कृति की बात करनी है, धार्मिक बने रहना है।

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