जीवन में स्थिरता, सहजता और सरलता लाने के लिए परमात्मा के साथ नाता जोड़ें : सुदीक्षा महाराज
दिल्ली/जैतो,9 दिसंबर(राजदार टाइम्स): ‘‘जीवन में स्थिरता, सहजता और सरलता लाने के लिए परमात्मा के साथ नाता जोड़े।’’ यह विचार सद्गुरु माता सुदीक्षा महाराज ने तीन दिवसीय 73वें वर्चुअल वार्षिक निरंकारी संत समागम के समापन दिवस पर व्यक्त किए। सद्गुरु माता सुदीक्षा ने कहा कि जीवन के हर पहलू में स्थिरता की आवश्यकता है। परमात्मा स्थिर, शाश्वत एवं एक रस है। जब हम अपना मन इसके साथ जोड़ देते हैं तो मन में भी ठहराव आ जाता है। जिससे हमारी विवेकपूर्ण निर्णय लेने की क्षमता बढ़ जाती है और जीवन के हर उतार-चढ़ाव का सामना उचित तरीके से कर पाते हैं। इस बात को और अधिक स्पष्ट करते हुए सद्गुरु माता ने कहा कि जैसे एक वृक्ष में फल लगने से पहले फूल आते हैं और फल उतारने का समय भी आ जाता है। उसके पश्चात् पतझड़ का मौसम आता है। जिसमें पत्ते तक निकल जाते हैं और एक हरा-भरा वृक्ष, जिसकी शाखाएँ हरी-भरी लहलहाती थी, अब वह सूखी लकडिय़ों की भाँति प्रतीत होता हैं। अस्थिरता और मौसम में परिवर्तन के बावजूद वह वृक्ष अपने स्थान पर खड़ा रहता है क्योंकि वह अपनी जड़ों के साथ मजबूती से जुड़ा हुआ है। इसी प्रकार हमारी जड़े, हमारा आधार, हमारी नींव इस परमात्मा के साथ जुड़ी रहें और हम इसके साथ इकमिक हो जाएं तब किसी भी परिस्थिति के आने से हम विचलित नहीं होते।

समागम का प्रथम दिन
समागम के पहले दिन सद्गुरु माता ने ‘मानवता के नाम संदेश’ प्रेषित कर समागम का विधिवत् उद्घाटन किया। जिसमें मानव को भौतिकता से ऊपर उठकर मानवीय मूल्यों को अपनाने का आवाह्न किया।
समागम का दूसरा दिन
सेवादल रैली
समागम के दूसरे दिन का आरंभ एक रंगारंग सेवादल रैली से हुआ जिसमें देश-विदेश के सेवादल भाई-बहनों द्वारा प्रार्थना, शारीरिक व्यायाम, खेल-कूद तथा विभिन्न भाषाओं के माध्यम द्वारा मिशन की मूल शिक्षाओं को दर्शाया गया। सेवा में समर्पित रहने वाले सभी संतों को अपना आशीर्वाद प्रदान करते हुए सद्गुरु माता सुदीक्षा महाराज ने कहा कि कोरोना के कारण जीवन में कितनी सारी परेशानियाँ एवं समस्याओं के आने के बावजूद जिन्होंने सेवाभाव से अपने मन को जोड़ें रखा उनके जीवन में सहजता और स्थिरता कायम रही। इस वर्ष की विपरीत परिस्थितियों में बहुत से लोगों की जीवनशैली भी बदल गई। लेकिन सेवादारों के द्वारा इस परिस्थिति में भी सेवा का वही जज्बा कायम रहा। इसी सेवाभाव को आगे बढ़ाते हुए कोविड-19 के दौरान सरकार द्वारा दिए गये दिशा-निर्देशों को अपनाते हुए मानवता के कल्याण के लिए सेवा में मिशन ने अपना भरपूर योगदान दिया।
दूसरे दिन के सत्संग समारोह को सम्बोधित करते हुए सद्गुरु माता जी ने कहा कि जब हमारा मन परमात्मा की पहचान कर इसका आधार लेता है, तब हम परमात्मा के ही अंश बन जाते है और जीवन में स्थिरता आ जाती है। सद्गुरु माता ने उदाहरण देते हुए कहा कि एक सागर का स्वरूप इतना गहरा, बड़ा और विशाल होता है। उसके बावजूद भी उसकी गहराई में कोई हलचल महसूस नहीं होती। लेकिन जब हम उसके किनारे की ओर आते हैं तो उसकी गहराई कम हो रही होती हैं। उसमें लहरें भी आती हैं, उछाल भी आते हैं और शोर भी सुनाई देने लगता है। इसी भाँति मानव जो सहनशील होता है विषम परिस्थिति में प्रभु, निरंकार के साथ जुडक़र उसकी स्थिरता कायम रहती है। इसके विपरीत जो इन्सान छोटी-छोटी बातों का असर ग्रहण करता है उसके व्यवहार से ही पता चल जाता है कि वह स्थिर नहीं है।
समागम का तीसरा दिन
कवि दरबार
समागम के समापन दिवस पर की संध्या को एक बहुभाषी कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। जिसमें विश्व भर के 21 कवियों ने ’‘स्थिर से नाता जोड़ के मन का, जीवन को हम सहज बनाएं ’’ शीर्षक पर विभिन्न बहुभाषी कविताओं से सब को आन्नदित किया। मीडिया को एह जानकारी संत निरंकार मंडल ब्रांच जैतो के मुखी अशोक धीर और बठिंडा के जोनल इंचार्ज एसपी दुग्गल ने दी।

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